Friday 31 December, 2010

नया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...


नया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें
!!! नव वर्ष-2011 की ढेरों मुबारकवाद !!!

चित्र : अक्षिता (पाखी)

Saturday 25 December, 2010

क्रिसमस की कहानी...

क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है. पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है।यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है, पर नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल कायम रखता है. उत्सवी परंपरा के अनुसार क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। विभिन्न देश इसे अपनी परम्परानुसार मानते हैं. जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं जबकि ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है, वहीँ पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।

आजकल क्रिसमस पर्व धर्म की बंदिशों से परे पूरी दुनिया में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है. क्रिसमस के दौरान एक दूसरे को आत्मीयता के साथ उपहार देना, चर्च में समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है। सजावट के दौरान क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। क्रिसमस ट्री तो अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

सेंट बेनेडिक्ट उर्फ सान्ता क्लाज़, क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है, जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है. मूलत: यह लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवत: रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।

आकांक्षा यादव

Monday 20 December, 2010

पुराने का न करो तिरस्कार : ओम प्रकाश बजाज


पुराने का न करो तिरस्कार,
पुराना नहीं होता सब बेकार,
बहुत काम के होते हैं,
पुराना घी, गुड़, चावल, अचार.

पुराने कपड़े, जूते, कापियां, किताबें,
कचरे में न डालो।
अपनी ये सब फालतू चीजें,
जरूरतमंदों को दिलवा दो.

नया खरीदने के चाव में,
पुराना बेकार न करते जाओ,
फजूलखर्ची की आदत छोड़ो,
किफायत का रहन-सहन अपनाओ।

ओम प्रकाश बजाज, बी-2, गगन विहार, गुप्तेश्वर, जबलपुर-482001

Thursday 16 December, 2010

बचपन - सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान के नाम से भला कौन अपरिचित होगा. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी उनकी अमर रचना ' बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी..." ने उन्हें जग प्रसिद्ध बना दिया. पर इससे परे सुभद्रा कुमारी चौहान ने बच्चों के लिए भी बहुत कुछ लिखा. यहाँ पढ़ते हैं उनकी एक कविता 'बचपन'-

बारबार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया, ले गया तू जीवन की सब से मस्त खुशी मेरी।।

चिन्ता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छन्द।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनन्द?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोपड़ी और चीथड़ों में रानी।

किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया।।

रोना और मचल जाना भी क्या आनन्द दिखाते थे
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे।।

मैं रोई, माँ काम छोड़कर आई, मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम, गीले गालों को सुखा दिया।।

दादा ने चन्दा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे।
धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे।।

यह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाली बड़ी हुई।
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई।।

लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में उमंग रंगीली थी
तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी।।

दिल में एक चुभन-सी थी यह दुनिया अलबेली थी।
मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी।।

मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन! ठगा दिया तू ने।
अरे! जवानी के फन्दे में मुझको फँसा दिया तू ने।।

सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी खुशियाँ न्यारी है।
प्यारी, प्रीतम की रंग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं।।

माना मैंने युवा-काल का जीवन खूब निराला है।
आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहने वाला है।।

किन्तु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना।
चिन्ता के चक्कर में पड़ कर जीवन भी है भार बना।।

आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शान्ति।
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली वह अपनी प्राकृत विश्रान्ति।।

वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का सन्ताप?

मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।
नन्दन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।

'माँ ओ' कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आई थीं।
कुछ मुँह में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लाई थी।।

पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतुहल था छलक रहा।
मुँह पर थी आहृलाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा।।

मैंने पूछा 'यह क्या लाई'? बोल उठी वह 'माँ, काओ'।
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा- 'तुम्हीं खाओ'।।

पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।
उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया।।

मैं भी उसके साथ खेलती खाती हूँ, तुतलाती हूँ।
मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ।।

जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया।
भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया।।

-सुभद्रा कुमारी चौहान

Sunday 12 December, 2010

प्यारा प्यारा भारत देश - डॉ० राष्ट्रबंधु


फूलों और फलों का देश
मीठा स्वाद सलोना वेश
प्यारा प्यारा भारत देश।

पर्वत रखते हैं ऊँचाई
रत्नाकर रखते गहराई
नदियों में बहता है अमृत
निर्झर ने ताकत दिखलाई
मेघ माँगते हैं आदेश
हरा भरा करते परिवेश
प्यारा प्यारा भारत देश।

काली पीली कुछ सिन्दूरी
कहीं भुरभुरी गोरी भूरी
मिट्टी कोहनूर रखती है
फसलों ने की आशा पूरी
अन्नपूर्णा माँ का वेश
दानशीलता का संदेश
प्यारा प्यारा भारत देश।

यहाँ शारदा गीत सुनाती
माँ रणचण्डी हमें जगाती
कृतियों ने इतिहास रचाया
हम गाते हैं गीत प्रभाती
गंध भरे इसके अवशेष
नित्य नया न्यारा उन्मेष
प्यारा प्यारा भारत देश।

-डॉ० राष्ट्रबंधु

Thursday 25 November, 2010

गुड़ियों का संसार : आकांक्षा यादव

गुड़िया भला किसे नहीं भाती। गुडिया को लेकर न जाने कितने गीत लिखे गए हैं. गुडिया के बिना बचपन अधूरा ही कहा जायेगा. खिलौने के रूप में प्रयुक्त गुड़िया लोगों को इतना भाने लगी कि इसके नाम पर बच्चों के नाम भी रखे जाने लगे. बचपन में अपने हाथों से बने गई गुड़िया किसे नहीं याद होगी. गुड्डे-गुड़िया का खेल और फिर उनकी शादी॥न जाने क्या-क्या मनभावन चीजें इससे जुडी थीं. लोग मेले में जाते तो गुड़िया जरुर खरीदकर लाते. रोते बच्चों को भी हँसा देती है प्यारी सी गुड़िया. अब तो बाजार में तरह-तरह की गुड़िया उपलब्ध हैं. गुड़िया की बकायदा ब्रांडिंग कर मार्केटिंग भी की जा रही है.

सर्वप्रथम गुड़िया बनाने का श्रेय इजिप्ट यानी मिश्रवासियों को जाता है। इजिप्ट में लगभग 2000 साल पहले धनी परिवारों में गुड़िया होती थीं। इनका प्रयोग पूजा के लिए व कुछ अलग प्रकार की गुड़िया का प्रयोग बच्चे खेलने के लिए करते थे। पहले इस पर फ्लैट लकड़ी को पेंट करके, उस पर डिजाइन किया जाता था। बालों को वुडन बीड्स या मिट्टी से बनाया जाता था। ग्रीस और रोम के बच्चे बड़े होने पर लकड़ी से बनी अपनी गुड़िया देवी को चढ़ा देते थे। उस समय हड्डियों से भी गुड़िया बनाई जाती थीं। ये आज की तुलना में बहुत साधारण होती थीं। कुछ समय बाद वैक्स से भी गुड़िया बनाई जाने लगीं। इसके बाद गुड़िया को रंग-बिरंगी ड्रेसेस पहनाई जाने लगीं। यूरोप भी एक समय में डाॅल्स हब था। वहाँ बड़ी मात्रा में गुड़िया बनाई जाती थीं।

17वीं-18वीं शताब्दी में वैक्स और वुड की बनी गुड़िया बहुत प्रचलित थीं। धीरे-धीरे इनमें सुधार होता रहा। 1850 से 1930 के बीच इंग्लैंड में गुड़िया के बनाने में एक और परिवर्तन किया गया। इनके सिर को वैक्स या मिट्टी से बनाकर प्लास्टर से इसको मोल्ड किया गया। सबसे पहले एक बेबी के रूप में गुड़िया को बनाने का श्रेय इंग्लैंड को जाता है। 19वीं शताब्दी में इस गुड़िया को भी वैक्स से बनाया गया था। 1880 में फ्रांस की बेबे नाम की गुड़िया तो खूब प्रसिद्द हुई थी। यही वह सुन्दर गुड़िया थी जिसको 1850 में बेबी के रूप में सबसे पहले बनाया गया था। इससे पहले की लगभग सभी गुड़िया बड़े लोगों के रूप में बने जाती थीं। लेकिन ये सभी गुड़िया काफी मँहगी थीं। जर्मनी ने बच्चों में गुड़िया का बढ़ता क्रेज देखकर सस्ती गुड़िया बनाने की शुरुआत की थी। मँहगी होने की वजह से अधिकतर माँ अपने बच्चे को काटन या लिनन के कपड़े से गुड़िया बनाकर देती थीं। 1850 में अमेरिकन कंपनियों ने इस प्रकार की गुड़िया बड़ी मात्रा में बनानी शुरू कर दीं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गुड़िया बनाने के लिए प्लास्टिक का प्रयोग शुरू किया गया. 1940 में कठोर प्लास्टिक की गुड़िया बनाई जाने लगीं। 1950 में रबड़, फोम आदि की गुड़िया भी बनाई जाने लगीं। इसके बाद तो गुड़िया को न जाने कितने रंग-रूप में ढाला गया. बार्बी गुड़िया के प्रति बच्चों का क्रेज जगजाहिर है. अब भिन्न-भिन्न प्रकार की और भिन्न-भिन्न दामों में गुड़िया बाजार में आ गई हैं. बस जरुरत है उन्हें खरीदने और फिर गुड़िया तो जीवन का अंग ही हो जाती है.

कई लोग तो तरह-तरह की गुड़िया इकठ्ठा करने का भी शौक रखते हैं. गुड़िया के बकायदा संग्रहालय भी हैं. इनमें से एक शंकर अन्तर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय नई दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट के भवन में स्थित है। इस संग्रहालय की स्थापना मशहूर कार्टूनिस्ट के. शंकर पिल्लई ने की थी। विभिन्न परिधानों में सजी गुड़ियों का यह संग्रह विश्व के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है। 1000 गुड़ियों से आरंभ इस संग्रहालय में वर्तमान में लगभग 85 देशों की करीब 6500 गुडि़यों का संग्रह देखा जा सकता है। यहाँ एक हिस्से में यूरोपियन देशों, इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, राष्ट्र मंडल देशों की गुडि़याँ रखी गई हैं तो दूसरे भाग में एशियाई देशों, मध्यपूर्व, अफ्रीका और भारत की गुड़ियाँ प्रदर्शित की गई हैं। इन गुड़ियों को खूब सजाकर रखा गया है।

Friday 19 November, 2010

कैसी दिखती थीं रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई के नाम से भला कौन अपरिचित होगा. आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था. पर क्या कभी आपने सोचा है कि वे दिखती कैसी रही होंगीं. तो चलिए इस बार आपको उनका एक दुर्लभ चित्र दिखाते हैं. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का यह दुर्लभ फोटो 159 साल पहले अर्थात वर्ष 1850 में कोलकाता में रहने वाले अंग्रेज फोटोग्राफर जॉनस्टोन एंड हॉटमैन ने खींचा था। इस फोटो को 19 अगस्त, 2009 को भोपाल में आयोजित विश्व फोटोग्राफी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। यह चित्र अहमदाबाद के एक पुरातत्व महत्व की वस्तुओं के संग्रहकर्ता अमित अम्बालाल ने भेजा था। माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई का यही एकमात्र फोटोग्राफ उपलब्ध है !!

Sunday 14 November, 2010

लौट आओ बचपन : आकांक्षा यादव


नेहरु जी के जन्म दिवस को 'बाल-दिवस' के रूप में मनाया जाता है. वाकई बाल-मन बड़ा चंचल होता है और बचपन की यादें हमेशा ताजी रहती हैं. आज बाल-दिवस पर बचपन की बातें हो जाएँ-

बचपन मेरा कितना प्यारा
मम्मी-पापा का राजदुलारा
माँ की ममता, पापा का प्यार
याद आता है लाड़-दुलार।

बचपन मेरा लौट जो आए
जीवन में खुशहाली लाए
पढ़ाई से मिलेगी छुट्टी
बात नहीं कोई होगी झूठी।

अब बचपन मेरे लौट भी आओ
हंसो, खेलो और मौज मनाओ।

Wednesday 10 November, 2010

अर्द्धचन्द्र - जितेन्द्र ‘जौहर’

रात पूछने लगा लाड़ला,
मम्मी से यह बात-
‘बतलाओ...माँ! चन्दा का क्यों,
दिखता आधा गात ?’


बोली माँ,‘दे दिया पजामा-
करने को कल साफ़।
इसीलिए आ गया आज वह,
पैंट पहनकर हाफ़।’


-जितेन्द्र ‘जौहर’,आई आर - 13/6, रेणुसागर, सोनभद्र (उप्र) 231218.

Friday 5 November, 2010

जंगल में दीवाली - कृष्ण कुमार यादव


जंगल में मनी दीवाली
चारों तरफ फैली खुशहाली
शेर ने पटाखे छुड़ाये
लोमड़ी ने दिये जलाये

बन्दर करता खूब धमाल
भालू नाचे अपनी चाल
हाथी सब खा गया मिठाई
गिलहरी ने रोनी सूरत बनाई

शेर गरजे पानी बरसे
होती हाथी की ढुंढ़ाई
तब तक लोमड़ी मिठाई लाई
मिल-बाँट कर सबने खाई।


कृष्ण कुमार यादव

Wednesday 27 October, 2010

अन्तिम घर का नौनिहाल : माणिक

एकदम काला काला सा और भूखा भी

अन्तिम घर का नौनिहाल था वो

घण्टी सुनकर स्कूल आता वेणीराम

ले बस्ता,बुझे मन से चल पड़ता स्कूल

बैठता था कुछ देर बारामदे में

जी अटका था बकरियों में

उसके बहरे कानों तक जा पंहुचती थी

मिंमियाती बकरियां,ढोर-ढंगर की आवाजाही

सुन आहट स्कूल के पिछवाड़े से ही

अनायास ही चल पड़ता फिर घर को

झुमता,कूदता हुआ,लांगता था नालियां

कारागार से छुटने सी खुशी थी उसे

एक नही दो नही,कई वेणीराम थे वहां

छपरे से झांकती उसकी मेहनती मां

और बाड़े से झांकती बकरियां

बुलाती थी उसे गरजवाली आंखों की टकटकी

रहा बसेरा इसी बस्ती में मेरा भी दिन चार

पेड़ों के सूखे पत्ते और झुरमुट झाड़ियां

थी उसके जीवन का रंगीन हिस्सा

चार भाइयों और तीन बहनों में

छुटका था वो सबसे पिछड़ा

ऑरकुट ,आईपीएल और सेंसेक्स

बेअसर लगते थे

उसकी बकरियों के झुण्डवाली मस्ती में

कमरबंधी रोटी,चटनी और दो प्याज

गिरते नही थे कहीं उसकी उछल-कूद में

तेज भूख,बीहड़ जंगल और गंदले तालाब

नंगे शरीर डूबकियों से बढ़ता आनन्द ऐसे में

बस्ती के बरगद पर लकड़ी में अटका

पगल्ये वाला झण्डा

और धूणी वाले बाबा पर मोहित चलमें पीते

उपरले मौहल्ले के ज़मादार

आज़ भी याद आते हैं

पीली मिट्टी से कभी-कभार पुती दीवारों पर

गेरुआं रंग के माण्डने देखे थे

खड़िया से बने दो-चार फूल और बेलबूटों

से झांकती है रचना उनकी

जैसे-तैसे

परेशानी के जीवन में खुशियां

छांटते थे वे लोग

दु:ख-दर्द की घड़ियों में

हिम्मत बांटते थे वे लोग

हम जान पायेंगे कैसे उन

आड़े-तिरछे छप्पर वाले

बेसुध मकानों की पीड़ा

नहीं भूल पाता हूं

सरकारी स्कूल की टोंटियां खुल्ली छोड़ जाते

आते जाते गुडमोर्निंग कहते वे

अनपढ़ और घुमक्कड़ बच्चें

याद रहा उनकी बोटल में भरा

पीपल वाले हेण्डपंप का गन्दा पानी

मेल जमे नाखुनों पर नेलपोलिश करती लड़कियां

जिसमें काम आती बाबुजी के पेन की नली

फूंक लगाकर स्लेट सुखाती

वो उलझे बालों वाली अनाथ लड़कियां

टंविंकल-टंविंकल से बढ़िया ब्याह के गीत गाती थी

कभी लगा कि

पुरखों की ज़बरन से हुए

बाल विवाह की उपज थी वो

हां कुछ बातें पक्की थी

स्कूल कभी का छूट गया

उपले,जंगल और खेतीबाड़ी

यही बचा बस उपवन में

ले देकर जिमणे के दिन याद आती थी

स्कूल के लिये मंगाई खाखी पेंट

झण्डे के झण्डे काम आती

वो सलवार-कुर्ती

झाड़ियों से हुई हाथापाई से बचा-कुचा

नीला शर्ट काम आयेगा

आज फ़िर से मरणभोज में जाते जाते

गांवों की जब-जब बात चली

पड़ौसी के ब्याह और मेले-मण्डप में

डोलते फिरते जो इधर उधर

वेणीराम से लड़के और फुलो जैसी लड़की

ताज़े अभिनय लगते रहे

कहानी अभी बाकी है

अध्धे और पव्वे मे डुबे लोगों की

लोगों से पिटती हुई अबलायें लिखना बाकी है

बस्ती का घोर अन्धेरा

छूकर डरना बाकी है

आज़ का अन्तिम यहीं तलक बस

अब मेरी भी

बकरियां छूटी जाती है

लिखुंगा फ़िर कभी मैं

फ़ुरसत में अपनी बस्ती को

लाउंगा वेणीराम और फुलो को भी

फिर से

कविता में कबड्डी खेलने को !!

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चित्तौड़गढ़- 312001 (राजस्थान) :
भारत ,Cell:-09460711896,
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Friday 22 October, 2010

मिलकर रहते कितने सारे - संजय भास्कर


देखो एक गगन पर तारे,

मिलकर रहते कितने सारे

नन्हें-मुन्ने प्यारे बच्चों,

इनसे मिल कर रहना सीखो

अपना लो तारों की आदत,

लगने लगोगे सबको प्यारे


या फिर शिक्षा फलों से लो,

एक बाग़ में खिलते सारे

कभी न आपस में लड़ते वो,

एक को एक भी न मारे


अगर न तुमको हो कुछ आता,

तो ले लो औरों से शिक्षा

मिलकर रहना हमें सिखाते,

कुदरत के लाखों नज़ारे


संजय भास्कर

Saturday 16 October, 2010

यूँ आरंभ हुआ विजयदशमी पर्व - कृष्ण कुमार यादव

कल दशहरा (विजयदशमी) पर्व है. यह पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन "दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री रूप में माँ दुर्गा की लगातार नौ दिनों तक पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और माँ ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी, तभी से शारदीय नवरात्र के बाद दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और आज भी प्रतीकात्मक रूप में रावण-पुतला का दहन कर अन्याय पर न्याय के विजय की उद्घोषणा की जाती है.

दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है।

आप सभी को विजयदशमी पर्व की ढेरों शुभकामनायें !!

Wednesday 13 October, 2010

नन्हे-मुन्नों की पैनी नज़र, भेदती धरती-आकाश की खबर

प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. यदि उचित परिवेश मिले तो बच्चे भी बड़ों जैसा कार्य कर सकते हैं. झारखण्ड में जमदेशपुर के पास मुसाबनी इलाके के नन्हें पत्रकार आजकल चर्चा में हैं. यूनिसेफ के सहयोग से चल रहे कार्यक्रम में प्रकाशित ये बच्चे किसी से पीछे नहीं हैं. वे रिपोर्टिंग करते हैं, फोटोग्राफी करते हैं और कई बार अपने कार्यों से लोगों को सचेत/सजग भी करते हैं. इनके अख़बार हैं- संथाल दर्पण, टालाडीह खबर, हालधबनी टाइम्स...और भी ढेर सारे. इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट आउटलुक पत्रिका के सितम्बर -2010 अंक में प्रकाशित हुई है. उसे यहाँ साभार स्कैन कर प्रकाशित किया जा रहा है-




(साभार : आउटलुक, सितम्बर 2010)

Saturday 9 October, 2010

लेटर बाक्स - कृष्ण कुमार यादव

आप सभी ने लेटर-बाक्स देखा होगा...लाल-लाल. अब तो हरे, पीले, नीले लेटर-बाक्स भी दिखने लगे हैं. ये लेटर बाक्स चिट्ठियों को एक जगह से दूजी जगह ले जाने के लिए आधार का कार्य करते हैं. इनके बिना तो पत्रों की दुनिया भी सूनी हो जाएगी. मोबाईल और नेट आ जाने के बाद दुनिया भर में व्यक्तिगत पत्रों की संख्या में कमी आई है, पर अपने देश में अभी भी हर दिन डाकिया 2 करोड़ डाक बाँटता है. सुनकर विश्वास नहीं होता न...पर यही सच है. आज तो 'विश्व डाक दिवस' भी है. इसी दिन विश्व डाक संघ का 1874 में गठन हुआ था. चलिए आज के दिन लेटर-बाक्स को लेकर एक बाल-कविता-



लाल रंग का लेटर बाक्स
पेट इसका खूब बड़ा
जाड़ा, गर्मी या बरसात
रहता है अडिग खड़ा

लाल, गुलाबी, हरे, नीले
पत्र जायें देश-विदेश
हर पत्र की है महत्ता
छुपा हुआ सबका संदेश।

खूब सारे पत्र आते
पेट में इसके समाते
सब पाकर अपना संदेशा
मन ही मन खुश हो जाते।

Saturday 2 October, 2010

हम बच्चों के प्यारे बापू - कृष्ण कुमार यादव


देश के प्यारे गाँधी बाबा
बच्चों के बापू कहलाए
सत्य-अहिंसा की नीति से
देश को आजादी दिलवाए .

सूरज से चमके बापू जी
कभी न हिम्मत हारे थे
अंगरेजों को मार भगाया
पीछे-पीछे सारे थे .

हम बच्चों के प्यारे बापू
सपनों में जब आते हैं
सत्य, अहिंसा, दया, धर्म
देश प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं।

-कृष्ण कुमार यादव-

Monday 27 September, 2010

एकता की ताकत : कवि कुलवंत सिंह


एक बार की बात है,
अब तक हमको याद है.
जंगल में थे हम होते,
पांच शेर देखे सोते.

थोड़ी आहट पर हिलते,
आंख जरा खोल देखते.
धीरे से आंख झपकते,
साथी से कुछ ज्यों कहते.

दूर दिखीं आती काया,
झुरमुट भैंसों का आया.
नन्हा बछड़ा इक उसमें,
आगे सबसे चलने में.

शेर हुए चौकन्ने थे,
घात लगाकर बैठे थे.
पास जरा झुरमुट आया,
खुद को फुर्तीला पाया .

हमला भैंसों पर बोला,
झुरमुट भैंसों का डोला .
उलटे पांव भैंसें भागीं,
सर पर रख कर पांव भागीं .

बछड़ा सबसे आगे था,
अब वो लेकिन पीछे था .
बछड़ा था कुछ फुर्तीला,
थोड़ा वह आगे निकला .

भाग रहीं भैंसें आगे,
उनके पीछे शेर भागे .
बछड़े को कमजोर पाया,
इक शेर ने उसे भगाया .

बछड़ा है आसान पाना,
शेर ने साधा निशाना .
बछड़े पर छलांग लगाई,
मुंह में उसकी टांग दबाई .

दोनों ने पलटी खाई,
टांग उसकी छूट न पाई .
गिरे, पास बहती नदी में
उलट पलट दोनों उसमें .

रुके, बाकी शेर दौड़ते,
हुआ प्रबंध भोज देखते .
शेर लगा बछड़ा खींचने,
पानी से बाहर करने .

बाकी शेर पास आये,
नदी किनारे खींच लाये .
मिल कर खींच रहे बछड़ा,
तभी हुआ नया इक पचड़ा .

घड़ियाल एक नदी में था,
दौड़ा, गंध बछड़े की पा .
दूजी टांग उसने दबाई,
नदी के अंदर की खिंचाई .

शेर नदी के बाहर खींचे,
घड़ियाल पानी अंदर खींचे .
बछड़ा बिलकुल पस्त हुआ,
बेदम और बेहाल हुआ .

खींचातानी लगी रही
घड़ियाल एक, शेर कई .
धीरे धीरे खींच लाए,
शेर नदी के बाहर लाए .

घड़ियाल हिम्मत हार गया,
टांग छोड़ कर भाग गया .
शेर सभी मिल पास आये,
बछड़ा खाने बैठ गये .

तभी हुआ नया तमाशा,
बछड़े को जागी आशा .
भैंसों ने झुंड बनाया,
वापिस लौट वहीं आया .

हिम्मत अपनी मिल जुटाई,
देकर बछड़े की दुहाई .
शेरों को लगे डराने,
भैंसे मिलकर लगे भगाने .

टस से मस शेर न होते,
गीदड़ भभकी से न डरते .
इक भैंसे ने वार किया,
शेर को खूब पछाड़ दिया .

दूसरे ने हिम्मत पाई,
दूजे शेर पे की चढ़ाई .
सींग मार उसे हटाया,
पीछे दौड़ दूर भगाया .

तीसरे ने ताव खाया,
गुर्राता भैंसा आया .
सींगों पर सिंह को डाला,
हवा में किंग को उछाला .

बाकी थे दो शेर बचे,
थोड़े सहमें, थोड़े डरे .
आ आ कर सींग दिखायें,
भैंसे शेरों को डरायें .

भैंसों का झुंड डटा रहा,
बछड़ा लेने अड़ा रहा .
हिम्मत बछड़े में आई,
देख कुटुंब जान आई .

घायल बछड़ा गिरा हुआ,
जैसे तैसे खड़ा हुआ .
झुंड ने उसको बीच लिया,
बचे शेर को परे किया .

शेर शिकार को छोड़ गये,
मोड़ के मुंह वह चले गये .
शेरों ने मुंह की खाई,
भैंसों ने जीत मनाई .

जाग जाये जब जनता,
राजा भी पानी भरता .
छोटा, मोटा तो डरता,
हो बड़ों की हालत खस्ता .

मिलजुल हम रहना सीखें,
न किसी से डरना सीखें .
एकता में ताकत होती,
जीने का संबल देती .

कवि कुलवंत सिंह

Monday 20 September, 2010

विलक्षण विशेषताओं को समेटे हुए क्वीन्स बैटन : कृष्ण कुमार यादव

भारत इस वर्ष 3 अक्टूबर से 19 वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन कर रहा है। परंपरानुसार इसकी शुरूआत 29 अक्तूबर, 2009 को बकिंघम पैलेस, लंदन में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को क्वीन्स बैटन हस्तांतरित करके हुई। इसके बाद ओलम्पिक एयर राइफल चैंपियन, अभिनव बिंद्रा ने क्वीन विक्टोरिया माॅन्युमेंट के चारों ओर रिले करते हुए क्वीन्स बैटन की यात्रा शुरू की। क्वीन्स बैटन सभी 71 राष्ट्रमंडल देशों में घूमने के बाद 25 जून, 2010 को पाकिस्तान से बाघा बार्डर द्वारा भारत में पहुँच गई और उसे पूरे देश में 100 दिनों तक घुमाया जाएगा। इस बीच यह जिस भी शहर से गुजर रही है, वहाँ इसका रंगारंग कार्यक्रमों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया के बाद भारत दूसरा देश है, जहाँ इसके सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में बैटन रिले ले जाया जा रहा है.

गौरतलब है कि सन् 1958 से प्रत्येक काॅमनवेल्थ खेलों का अग्रदूत रही क्वीन्स बैटन रिले इन खेलों की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं में एक है। वस्तुतः ’रिले’, खेल और संस्कृति के इस चार वर्षीय उत्सव में राष्ट्रमंडल देशों के एकजुट होने का प्रतीक है। विगत वर्षों में, क्वीन्स बैटन रिले राष्ट्रमंडल देशों की एकता एवं अनेकता के सशक्त प्रतीक के रूप में विकसित हुआ है। प्रत्येक खेल के साथ, पैमाने और महत्व की दृष्टि से इस परम्परा का विस्तार हो रहा है एवं इसमें और देश और प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं। दिल्ली 2010 बैटन रिले यात्रा को अब तक की सबसे बड़ी रिले यात्रा माना जा रहा है। इस बैटन को माइकल फाॅली ने डिजाइन किया है, जो नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ डिजाइन के स्नातक हैं। यह बैटन तिकोने आकार का अल्युमिनियम से बना हुआ है, जिसे मोड़ कर कुण्डली का आकार दिया गया है। इसे भारत के सभी क्षेत्रों से एकत्र विभिन्न रंगों की मिट्टी के रंगों से रंगा गया है। क्वीन्स बैटन को रूप प्रदान करने में विभिन्न रंगों की मिट्टी का इस्तेमाल पहली बार किया गया है। रत्नजड़ित बक्से में ब्रिटेन के महारानी के संदेश को रखा गया है और इस संदेश को प्राचीन भारतीय पत्रों के प्रतीक 18 कैरट सोने की पŸाी में लेजर से मीनिएचर के रूप में उकेरा गया है ताकि इसे आसानी से प्रयोग किया जा सके। क्वीन्स बैटन की रूपरेखा अत्यंत परिश्रम से तैयार की गई है। इसकी उंचाई 664 मिलीमीटर है, निचले हिस्से में इसकी चैड़ाई 34 मिलीमीटर है और ऊपरी हिस्से में इसकी चैड़ाई 86 मिलीमीटर है। इसका वजन 1,900 ग्राम है।

क्वीन्स बैटन अपने अंदर बहुत सी विलक्ष्ण विशेषताओं को समेटे हुए है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मसलन, इसमें चित्र खींचने और ध्वनि रिकार्ड करने की क्षमता है तो इसमें ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) टेक्नोलाॅजी भी मौजूद है जिससे बैटन के स्थान की स्थिति हरदम प्राप्त की जा सकती है। यही नहीं इसमें जड़े हुए लाइट एमिटिंग डायोड (एलईडी) द्वारा जिस देश में बैटन ह,ै उस देश के झंडे के रंग में परिवर्तित हो जाता है। इसके अलावा यह टेक्स्ट मैसेजिंग क्षमता से लैस है ताकि लोग बैटन वाहकों को समूचे रिले के दौरान बधाई एवं प्रेरणादायक संदेश भेज सकें। यह अब तक की सबसे लंबी तकनीकी रूप से विकसित बैटन रिले भी है। गौरतलब है कि भारतीय डाक विभाग ने भी काॅमनवेल्थ खेल 2010 के अग्रदूत के रूप में बैटन के भारत में पहुंचने के उपलक्ष्य में इस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में दो स्मारक डाक टिकटों का सेट जारी किया है। एक सेट में बैटन का चित्र है और दूसरे में दिल्ली के इंडिया गेट की पृष्ठभूमि में गौरवान्वित शेरा को बैटन पकड़े हुए चित्रित किया गया है।

Thursday 16 September, 2010

बच्चों से जुड़े ब्लॉग अब प्रिंट-मीडिया में भी चर्चित


बच्चों की बात ही निराली होती है. फिर बच्चों से जुड़े ब्लॉग भी तो निराले हैं. अब तो बाकायदा इनकी चर्चा प्रिंट-मीडिया में भी होने लगी है. 'हिंदुस्तान' अख़बार के दिल्ली संस्करण में 16 सितम्बर, 2010 को प्रकाशित भारत मल्होत्रा के लेख 'ब्लॉग की क्रिएटिव दुनिया' में बच्चों से जुड़े ब्लॉगों की भरपूर चर्चा की गई है. इसमें 'बाल-दुनिया' की भी चर्चा की गई है, इसके लिए आभार !!
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दोस्तो, तुम्हें याद होगा कि कुछ समय पहले हमने तुम्हें बताया था कि तुम अपना ब्लॉग कैसे बना सकते हो। जब हमने नेट पर सर्च किया तो पाया कि ऐसे बहुत से ब्लॉग बच्चों के हैं। कुछ बच्चे खुद ही अपने ब्लॉग को अपडेट करते हैं तो कुछ टेक्निकल जानकारी न होने की वजह से अपने पेरेंट्स या फिर किसी बड़े की मदद ले रहे हैं। जब हमने इन ब्लॉग्स को देखा तो वे बेहद रोचक लगे। कोई अपने पिकनिक पिक्चर नेट पर शेयर कर रहा है तो कोई बता रहा है कि किसी परिणाम से पहले उसे कैसा महसूस हुआ। पेंटिंग, कहानी, कविता, जोक्स आदि जो मन करता है, अपने ब्लॉग पर लिख रहे हैं। चलो मिलते हैं ऐसे ही कुछ बच्चों से, जो किसी स्टार से कम नहीं। भारत मल्होत्रा की रिपोर्ट।

दोस्तो, जब तुम इन ब्लॉग्स की सैर करोगे तो पाओगे कि तुम्हारी ही उम्र के बच्चे अपनी क्रिएटिविटी को कैसे दुनिया भर के लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही यहां होंगे कुछ ऐसे ब्लॉग्स, जो तुम्हारे लिये बेहद फायदेमंद होंगे और जिन्हें पढ़ना तुम्हारे लिये फायदे का सौदा होगा। इनमें कविता है, ड्रॉइंग है, मजेदार कहानियां हैं और सीखने को है बहुत कुछ। वे पापा से चॉकलेट मांगते हैं और मम्मी को तंग करते हैं। दादा-दादी के लाडले हैं और नानी के घर जाकर खूब ऊधम भी मचाते हैं। लेकिन इस सबके बाद भी ब्लॉगिंग भी करते हैं। तो चलो आज कुछ ऐसे ही नन्हे ब्लॉगर्स से मिला जाये-
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http://akshaysdream.blogspot.com/
नवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र अक्षय का यह ब्लॉग है। वह कहते हैं कि ब्लॉग बनाने की प्रेरणा मुझे अपनी मम्मी से मिली। दरअसल मम्मा जब भी कंप्यूटर में ब्लॉग पर कुछ-कुछ टाइप कर रही होती थीं तो मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा। मैंने मम्मा से कहा कि मुझे भी बताओ कि कैसे आप टाइप कर लेती हैं। एक खास तरह के फॉन्ट पर मम्मा ने टाइप करना मुझे सिखा दिया। फिर क्या था, मैं जो कविताएं कागज पर लिखा करता था, वह मैं अपने ब्लॉग पर करने लगा। 2007 में बने इस ब्लॉग पर मेरी कविताओं के लिए लगातार कमेंट्स आ रहे हैं। इस ब्लॉग पर मैं कविताओं के अलावा ड्रॉइंग भी बनाता हूं। मैंने अपने ब्लॉग का लिंक अपने ऑरकुट अकाउंट पर दिया हुआ है ताकि मेरे दोस्त भी ब्लॉग के लिंक पर क्लिक करें। देखा दोस्तो, अक्षय अपने ब्लॉग को लेकर कितना उत्साहित है।

http://www.pakhi-akshita.blogspot.com/
इस ब्लॉग के बाद नाम आता है अक्षिता यादव का। अक्षिता का प्यार का नाम पाखी है, यानी चिड़िया। उसकी उम्र तो बेहद कम है, लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग में वो एक जाना-पहचाना नाम बन चुकी है। अक्षिता के ब्लॉग पाखी की दुनिया पर क्लिक करके पहुंचा जा सकता है। इसमें उसकी रोजमर्रा की कहानी भी होती है। बात टीचर्स डे मनाने की हो या फिर जन्माष्टमी की खुशियां मनाने की, अक्षिता हर भावना को व्यक्त करने में कामयाब रही है। इसके साथ ही उसके ब्लॉग पर उसके बनाये चित्र भी देखे जा सकते हैं।

खूबसूरती से रंग भरती है अक्षिता।

अक्षिता अपने मम्मी-पापा के साथ पोर्ट-ब्लेयर में रहती है, लेकिन उसके मम्मी -पापा दोनों ब्लॉगिंग करते हैं। अक्षिता को प्लेयिंग, ड्रॉइंग के साथ-साथ घूमना-फिरना भी बेहद पसंद है, इसके साथ ब्लॉगिंग से तो उसे प्यार है ही। अक्षिता का ब्लॉग बेहद पॉपुलर है और फिलहाल हिन्दी के टॉप 150 ब्लॉगों में से एक है। तुम्हें पता है कि पाखी की तस्वीर तो बच्चों की एक मैगजीन के कवर पर भी छप चुकी है। बहुत पसंद किया जाता है पाखी को। कई अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में पाखी के नाम का जिक्र हो चुका है।

पाखी यह भी कहती है कि ब्लॉगिंग करने से उनके बाकी कामों पर कोई असर नहीं पड़ता। वो पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद के लिये पूरा वक्त निकाल लेती है। ब्लॉग पर उसके काम को देखते हुए उसे एक संस्थान की ओर से 2010 की सर्वश्रेष्ठ नन्ही ब्लॉगर का इनाम भी मिल चुका है। है, न मजेदार बात। हां, एक जरूरी बात, अक्षिता क्यों कि अभी छोटी है, इसलिये अपनी बातें और विचार ब्लॉग पर उतारने के लिये उसे अपने माता-पिता की मदद लेनी पड़ती है।

http://balduniya.blogspot.com/
यूआरएल पर जाकर तुम्हें निराश नहीं होना पड़ेगा। ये ब्लॉग पूरी तरह से तुम्हारे लिये ही हैं। इस पर तुम्हारे लिये ढेरों कवितायें भरी पड़ी हैं। इसके साथ ही कई मजेदार जानकारियां भी हैं, जैसे- हैप्पी बर्थडे गीत की शुरुआत कैसे हुई? फ्रैंडशिप डे के पीछे कौन सी कहानी छुपी है? यह क्यों मनाया जाता है? इसकी शुरुआत कैसे हुई?

इसमें कई रचनायें तो तुम्हारी उम्र के बच्चों की ओर से की गयी हैं। हां, अगर तुम चाहो तो तुम भी अपनी रचना, ड्रॉइंग आदि इस ब्लॉग पर भेज सकते हो, फिर वो तुम्हारे नाम से उसे यहां लगा देंगे। क्यों, है न मजेदार।

http://riddhisingh.blogspot.com/
ब्लॉग देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। इसे एक बार देखने से यही लगता है कि कोई बड़ा इस छोटे से बच्चे की भावनाओं को, उसकी बातों को और उसकी शरारतों को तुम तक पहुंचाता है। क्योंकि यह ब्लॉग तुम जैसे ही किसी बच्चे का है, इसलिए वहां कुछ तुम्हें पसंद आए तो कमेंट जरूर करना। मौज-मस्ती से भरपूर यह ब्लॉग तुम्हारा मनोरंजन जरूर करेगा।

http://balsajag.blogspot.com/
बाल सजग एक ऐसा ब्लॉग है, जो बना है सिर्फ तुम बच्चों के लिए। इसकी टीम में सभी मजदूर बच्चे हैं, जो काम करते हैं और साथ ही कवितायें-कहानियां भी कहते हैं। इस ब्लॉग पर आने के बाद तुम्हें अहसास होगा कि भले ही इन बच्चों के पास सुविधाओं की कमी हो, लेकिन टेलेंट की कोई कमी नहीं है। ये बच्चे पेड़ लगाने का मैसेज भी देते हैं और नेताओं पर व्यंग्य भी करते हैं। हां, इनकी भाषा बिल्कुल तुम्हारे जैसी है- सिंपल। इस ब्लॉग पर एक बार आकर देखो, तुम्हें मजा आ जायेगा।

http://saraspaayas.blogspot.com/
इस ब्लॉग को हम लोगों तक पहुंचाने के लिए यह बच्चा अपने पेरेंट्स की मदद लेता है। यह ब्लॉग है रावेंद्र कुमार रवि का, लेकिन है ये तुम्हारे लिये। इसमें कई बच्चों के ब्लॉग के लिंक हैं और साथ ही मजेदार कवितायें भी हैं। इसके साथ ही मजेदार बातें तो हैं ही।

http://nanhaman.blogspot.com/
नन्हा मन इस ब्लॉग का नाम है। ब्लॉग की दुनिया में तुम लोगों के लिये यह एक ऐसा ब्लॉग है, जहां तुम्हारे मनोरंजन का खास ख्याल रखा गया है। और अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी कोई रचना यहां छपे तो nanhaman@gmail.com पर उसे मेल भी कर सकते हो।

दोस्तो, हो सकता है कि तुम्हें अच्छी कहानी, कविता लिखनी आती हो। तुम में से कुछ बच्चे अच्छी पेंटिंग करना भी जानते होंगे। लेकिन जब बात आती है इन सारी चीजों को कंप्यूटर में अपलोड करने की तो हो सकता है तुम्हें इसकी टेक्निकल जानकरी न हो। इस काम के लिए बड़ों की मदद लेने में मत हिचकना। जो बच्चे कंप्यूटर में ब्लांगिग करना चाहते हैं, वे बड़ों को देख-देख एक दिन खुद-ब-खुद एक्सपर्ट हो जाएंगे। हिन्दी में बच्चों के और ब्लॉग्स के लिये क्लिक करें
http://hindikids.feedcluster.com

साभार : Live हिंदुस्तान. com

Tuesday 14 September, 2010

हिन्दी बने राष्ट्र की भाषा : कृष्ण कुमार यादव


हिन्दी है यह हिन्दी है
राष्ट्र-भाल की बिन्दी है
भाषाओं की जान है
भारत का अरमान है।

अमर शहीदों ने अपनाया
अंग्रेजों को मार भगाया
बापू थे इसके पैरोकार
संविधान में मिला स्थान।

हम सबकी है यह अभिलाषा
हिन्दी बने राष्ट्र की भाषा
आओ सब गुणगान करें
सब मिलकर सम्मान करें।




Thursday 9 September, 2010

बारिश का मौसम : दीनदयाल शर्मा

बारिश का मौसम है आया।
हम बच्चों के मन को भाया।।
'छु' हो गई गरमी सारी।
मारें हम मिलकर किलकारी।।
कागज की हम नाव चलाएं।
छप-छप नाचें और नचाएं।।
मजा आ गया तगड़ा भारी।
आंखों में आ गई खुमारी।।
गरम पकौड़ी मिलकर खाएं।
चना चबीना खूब चबाएं।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी।
मिट गई मन की खुश्की सारी।।

Sunday 5 September, 2010

शिक्षक-दिवस की शुभकामनायें !!


आज डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्ण का जन्म-दिवस है. इस तिथि को शिक्षक-दिवस के रूप में मनाया जाता है. शिक्षक दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !!

Thursday 2 September, 2010

भयो नन्द लाल : निर्भय जैन


माचो गोकुल में है त्यौहार, भयो नन्द लाल
खुशिया छाई है अपरम्पार, भयो नन्द लाल

मात यशोदा का है दुलारा,
सबकी आँखों का है तारा
अपनों गोविन्द मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

मात यशोदा झूम रही है
कृष्णा को वो चूम रही है
झूले पलना मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

देख के उसकी भोली सुरतिया
बोल रही है सारी सखिया
कितनो सुंदर है मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

!! कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को शुभकामनायें !!

जनोक्ति : निर्भय जैन

Sunday 29 August, 2010

स्कूल में बच्चों को शारीरिक दंड क्यों : अरिंदम चौधरी

मेरी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के एक बेहतरीन स्कूल में हुई। वहां शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को थप्पड़ मारना आम बात थी। यहां तक कि चौथी-पांचवीं कक्षा के बच्चों की भी बेंत से पिटाई लगाई जाती थी। सौभाग्य से मैं इससे बचा रहा। हालांकि छठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मैं उतना भाग्यशाली नहीं रहा। एक दिन स्कल्पचर की क्लास के दौरान जब मैं अपने एक मित्र के साथ सृजनात्मक मसले पर चर्चा कर रहा था कि तभी एक असिस्टेंट ने आकर मेरे सिर पर एक जोरदार चपत लगा दी। मैं गुस्से का घूंट पीकर रह गया। घर लौटने पर मैंने अपने पिता से कहा कि उन्हें इस मसले पर कुछ करना होगा। अगले दिन पिताजी मुझे स्कूल के प्रिंसिपल के पास लेकर गए और कहा कि वह नहीं चाहते कि उनके बेटे यानी मुझे स्कूल में शारीरिक दंड मिले। चर्चा करने के बाद यह तय हुआ कि अबसे मेरी जेब में हमेशा एक पत्र रहेगा, जिसमें लिखा था कि यदि किसी टीचर को मुझसे कोई समस्या है तो वह इसकी लिखित शिकायत मेरे पिताजी से कर सकता है लेकिन मुझे स्कूल में कोई मारेगा नहीं। इस पत्र पर प्रिंसिपल ऑफिस की मुहर लगी थी। उसके बाद से इस स्कूल में किसी भी टीचर ने मुझे नहीं मारा।

सच यह है कि किसी को (और खासकर स्कूल में बच्चों को) पीटकर हम अपने शिक्षा की कमी को ही जाहिर करते हैं। यदि हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जहां शांति हो, जहां सड़कों पर दंगे न हों और जहां लोग सहिष्णु हों और एक-दूसरे से प्यार करें, तो हमें अपने बच्चों को स्कूल के शुरुआती जीवन से ही शांति, प्यार और सहिष्णुता के दर्शन कराने चाहिए।

एक टीचर के तौर पर अपने सोलह साल के अनुभव के बाद मैं पूरे भरोसे के साथ यह कह सकता हूं कि ऐसा कोई कारण नहीं होता जिसके लिए किसी टीचर के लिए छात्र को क्लासरूम में या दूसरों के सामने मारना जरूरी हो जाए। यदि कोई शिक्षक अच्छा है और शिक्षण के प्रति समर्पित है, तो उसे पढ़ाने की प्रक्रिया में इतना आनंद आता है कि छात्रों के लिए भी यह मनोरंजक प्रक्रिया बन जाती है।

आईआईपीएम में जब कोई टीचर आकर यह शिकायत करता है कि छात्रों का फलां समूह अनियंत्रित और खराब है तो मैं उस टीचर को बदल देता हूं, क्योंकि मुझे पक्का यकीन है कि कोई भी छात्र खराब नहीं होता। यह टीचर ही हैं जो खराब या उबाऊ होते हैं जिनकी दूसरों की जिंदगी बदलने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती।

अच्छे शिक्षक को कभी छात्रों के साथ समस्या नहीं होती। खराब शिक्षकों को ही होती है और वे इसके समाधान के लिए शारीरिक दंड का शॉर्टकट तरीका अपनाते हैं। शारीरिक दंड बचपन में कभी कारगर नहीं होता। इससे मुख्यत: दो तरह के इंसान बनते हैं।
एक तो वे जो इसके आदी होते हैं और इसकी परवाह नहीं करते हुए ज्यादा अड़ियल हो जाते हैं। दूसरे वे जिनका व्यक्तित्व सजा के भय से बिगड़ जाता है। ऐसे छात्र भले ही ज्यादा आज्ञाकारी हो जाएं लेकिन उनका व्यक्तित्व हमेशा के लिए खराब हो जाता है।

हमें ऐसे कानून की जरूरत है जो स्कूलों में शारीरिक दंड की प्रक्रिया को पूरी तरह रोक दे। स्कूल का काम बच्चों की जिंदगी संवारना है, बर्बाद करना नहीं। हां, स्कूल में कुछ ऐसे बच्चे भी आते हैं, जिन्हें घर में मारा-पीटा जाता है और उनका बर्ताव कई बार बहुत नकारात्मक होता है।

टीचर में यह क्षमता होनी चाहिए वह उनके बर्ताव को बदल सके। हां, यदि टीचर छात्रों को बदलने के लिहाज से समुचित रूप से प्रशिक्षित न हो और बच्च बहुत उद्दंड और बिगड़ैल हो तो टीचर ज्यादा से ज्यादा यही करे कि उस बच्चे को उसके माता-पिता या कानून अनुपालकों को सौंप दे। लेकिन टीचर खुद पुलिस नहीं है और उसे बच्चों को शारीरिक रूप से दंडित करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। अभिभावक भी बच्चों की स्कूल में पिटाई को रोकें।

अच्छा टीचर वही है जो मानता हो कि उसका काम शिक्षा के जरिए बच्चों को बेहतर इंसान बनाना है। वह मानता हो कि उसका काम बच्चों को यह भरोसा दिलाना है कि वे क्लास के अंदर जो भी सीखेंगे, उससे उनका जीवन बदलेगा और वे बेहतर इंसान बनेंगे।

- लेखक शिक्षाविद व आईआईपीएम के प्रमुख हैं।

Tuesday 24 August, 2010

राखी का त्यौहार आया : आकांक्षा यादव


प्यारी-प्यारी मेरी बहना
हरदम माने मेरा कहना
राखी का त्यौहार आए
मन को भाये, खूब हर्षाए।

बांधे प्यार से राखी बहना
प्यार का अद्भुत सुंदर गहना
भैया मेरे तुम रक्षा करना
दुःख आये तो मिलजुल सहना।

राखी बांध मिठाई खिलाए
तिलक लगाकर खूब दुलराए
ऐसा सुंदर है यह रिश्ता
देख-देख मम्मी मुस्कायंे।

पढ़-लिखकर मैं बड़ा बनूंगा
बहना को दूंगा उपहार
मेरी बहना जग से न्यारी
पावन है भाई-बहन का प्यार।

Friday 20 August, 2010

बन्दर आया : संजय भास्कर


बन्दर आया बन्दर आया
मेरे घर एक बन्दर आया
मैं डर कर भागा अन्दर
मेरे पीछे पड़ गया बन्दर
मैंने तब उसे केला दिखलाया
सोचा, मुश्किल से पीछा छुडाया
बन्दर निकला बड़ा चालाक
करता रहा भागम-भाग
बन्दर ने मुझसे केला छीना
मुझको आया जोर का पसीना
बन्दर आया बन्दर आया
मेरे घर एक बन्दर आया.

संजय भास्कर

Sunday 15 August, 2010

तिरंगे की शान : कृष्ण कुमार यादव


तीन रंगों का प्यारा झण्डा
राष्ट्रीय ध्वज है कहलाता
केसरिया, सफेद और हरा
आन-बान से यह लहराता

चौबीस तीलियों से बना चक्र
प्रगति की राह है दिखाता
समृद्धि और विकास के सपने
ले ऊँचे नभ में सदा फहराता

अमर शहीदों की वीरता और
बलिदान की याद दिलाता
कैसे स्वयं को किया समर्पित
इसकी झलक दिखलाता

आओ हम यह खायें कसम
शान न होगी इसकी कम
वीरों के बलिदानों को
व्यर्थ न जानें देंगे हम।

कृष्ण कुमार यादव

Tuesday 10 August, 2010

सब हैप्पी बर्थ-डे गाओ : आकांक्षा यादव


देखो जन्म-दिन है आया
बच्चों करो खूब धमाल
जमके खूब खाओ सब
हो जाओ लाल-लाल।

सब हैप्पी बर्थ-डे गाओ
मस्ती करो, मौज मनाओ
बंटी, बबली, पाखी, बेबी
सब मिलकर बैलून फुलाओ।

आईसक्रीम और केक खाओ
कोई भी न मुँह फुलाओ
कितना प्यारा बर्थ-डे केक
सब हैप्पी बर्थ-डे गाओ।

(आज कृष्ण कुमार जी का हैपी बर्थ-डे है, यहाँ प्रदर्शित चित्र उनके बचपन की है. यह बाल-गीत उन्हें समर्पित)

Friday 6 August, 2010

दिल्ली में छठी कक्षा के बच्चे ने लिखी कुत्ते पर किताब

सुनने में आश्चर्य लगता है, पर दिल्ली के माउंट सेंट मेरी स्कूल के कक्षा छह के छात्र 11 वर्षीय ध्रुव ने अपने तीन साल के पालतू कुत्ते की दिनचर्या को लेकर उसकी आत्मकथा ही लिख डाली। ‘ऐज क्यूट ऐज पग’ नाम की इस किताब का लोकार्पण जाने माने पर्यावरणविद् और फिल्म निर्माता माइक पांडे ने किया। ध्रुव ने अपनी इस पुस्तक में एक कुत्ते की दृष्टि से दुनिया को देखने और समझने की कोशिश की . दिल्ली के माउंट सेंट मेरी स्कूल के कक्षा छह के छात्र ध्रुव का कहना है कि सबसे पहले गर्मी की छुट्टियों के दौरान स्कूल में मिले कहानी लेखन को लेकर उसके मन में कुत्ते की ओर से कुछ लिखने की बात दिमाग मेंआई कि आखिर एक कुत्ता हमारे बीच रहते हुए क्या सोचता होगा। ? कुत्ते की यह आत्मकथा हल्की-फुल्की कहानी के शक्ल में है, जिसमें भरपूर कॉमेडी है। मुख्य पात्र टप्पी है जिसका सपना है कि वह इंसानों जैसा दिखे। इसी सपने को साकार करने के लिए वह कई बार इंसानों जैसी हरकतें करता है। इन सभी मजेदार हिस्सों को ध्रुव ने अपनी नन्हीं कल्पनाओं के आधार पर बड़े ही मजेदार तरीके से व्यक्त किया है।.वाकई यह दर्शाता है कि बच्चे कितने रचनात्मक होते हैं. अपने परिवेश में हो रही घटनाओं से वे ना-वाकिफ नहीं हैं और यहीं से उनकी रचनात्मकता को पंख भी लग जाते हैं...!!

Thursday 5 August, 2010

ये क्यूं हो गया : किरण राजपुरोहित नितिला


जी भरकर खेली भी न थी
पापा की गोदी में
लडाया ही न था मां ने
भरपूर अपनी बांहों में!
दादी की दुलार ने
थपका भी न था अभी
दादा ने उंगली थाम
कुछ दूर ही चलाया था!
जीजी की छुटकी अभी
मस्ती में उछली न थी
छोटू का दूध झपट कर
पिया न था जी भर कर!
छुटकी के खिलौनों से
कुढ़ ही तो रही थी
भैया के चिकोटी के निशां
अभी ताजे ही तो थे,
बाजू से उसके मेरे दांतों
की ललाई छूटी न थी
ठुनक ठुनक कर जिद से
रोना मनमानी में और
खुश हो कर दादा के
गले लगती ही थी !
सहेली की धौल याद थी
उसकी कुट्टी अभी भूली न थी
नई फ्रॉक न आने पर
मचलना जारी ही था
उछल कर भइसा की गोद में
चढना यूं ही चल रहा था !
पड़ोस के भैया को
बहाने खोजती थी चिढाने के
पड़ोसन चाची को डराना
चुपके से, चल ही रहा था
संतोलिया छुपाछुपी का रंग
अभी चढ़ ही रहा था
गड्डे कंचे अभी स्कर्ट की
जेब में चिहुंक ही रहे थे !
आंगन में चहक
शुरु ही हुई थी
मां की लाड़ली गोरैया
कहां मस्त फुदकी थी ,
महसूस ही तो न किया था
मन भर ना ही जिया था
जो अनमोल था उसे
सहज ही तो लिया था
इतना तो सोचा भी न था
और ....और..........
और ....सबकी नजरें बदल गई
नसीहतें बरसने लगी !
कुछ सीखो !
कब सीखोगी !
यहां मत जाओ !
उससे बात न करो !
इस तरह मत हंसा करो!
सब कहते संभल कर रहो !
यह मत पहनो ! नजर नीची रखो !
क्यूं कि ------क्यूं कि
अब तुम बड़ी हो गई हो !!

किरण राजपुरोहित नितिला

Tuesday 3 August, 2010

मोबाइल : दीनदयाल शर्मा


माँ, मैं भी मोबाइल लूँगा,
अच्छी-अच्छी बात करूँगा।

हर मौके पर काम यह आता,
संकट में साथी बन जाता।
होम-वर्क पर ध्यान मैं दूँगा,
पढऩे में पीछे न रहूँगा।

मेरी ख़बर चाहे कभी भी लेना,
एस० एम० एस० झट से कर देना।
स्कूल समय में रखूँगा बंद,
सदा रहूँगा मैं पाबंद।

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।

Sunday 1 August, 2010

आज फ्रैंडशिप डे ...बधाई

आज 1अगस्त को ‘फ्रेण्डशिप-डे‘ है। चलिए, आज इसके बारे में बताती हूँ। पूरी दुनिया में अगस्त माह का प्रथम रविवार फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है. इसके इतिहास में जाएँ तो अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1935 में अगस्त माह के प्रथम रविवार को दोस्तों के सम्मान में ‘राष्ट्रीय मित्रता दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था। इस अहम दिन की शुरूआत का उद्देश्य प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उपजी कटुता को खत्म कर सबके साथ मैत्रीपूर्ण भाव कायम करना था। पर कालान्तर में यह सर्वव्यापक होता चला गया। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े, इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बकायदा 1997 में लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती के राजदूत के रूप में पेश किया।

इस दिन तो फ्रेण्डशिप कार्ड, क्यूट गिफ्ट्स और फ्रेण्डशिप बैण्ड देकर आप दोस्तों को बधाई दे सकते हैं या नई दोस्ती की शुरुआत कर सकते हैं. पर एक बात सदैव याद रखना कि सच्चा दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त का सही मायनों में विश्वासपात्र होता है। अगर आप सच्चे दोस्त बनना चाहते हैं तो अपने दोस्त की तमाम छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी बातों को उसके साथ तो शेयर करो लेकिन लोगों के सामने उसकी कमजोरी या कमी का बखान कभी न करो। नही तो आपके दोस्त का विश्वास उठ जाएगा क्योंकि दोस्ती की सबसे पहली शर्त होती है विश्वास। हाँ, एक बात और। उन पुराने दोस्तों को विश करना न भूलें जो हमारे दिलों के तो करीब हैं, पर रहते दूरियों पर हैं।

Friday 30 July, 2010

कहाँ से आई 'हैप्पी बर्थडे टू यू' की पैरोडी

आज 30 जुलाई को मेरा जन्मदिन है। जन्मदिन की बात आती है तो ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ गीत जरुर याद आता है. कभी सोचा है कि आखिर ये प्यारी सी पैरोडी आरम्भ कहां से हुई। आज आपने जन्मदिन पर इसी के बारे में बताती हूँ.

वस्तुतः ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ की मधुर धुन ‘गुड मार्निंग टू आल‘ गीत से ली गयी है, जिसे दो अमेरिकन बहनों पैटी हिल तथा माइल्ड्रेड हिल ने 1993 में बनाया था। ये दोनों बहनें किंडर गार्टन स्कूल की शिक्षिकाएं थीं। इन्होंने ‘गुड मार्निंग टू आल‘ गीत की यह धुन इसलिए बनायी ताकि बच्चों को इसे गाने में आसानी हो और मजा आये। फिलहाल दुनिया भर में इस गीत का 18 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस गाने की धुन और बोल पहली बार 1912 में लिखित रूप से प्रकाश में आये। इस गाने पर सुम्मी कंपनी चैपल ने इस कंपनी को 15 अमेरिकी मिलियन डाॅलर में खरीद लिया। उस वक्त इस धुन की कीमत करीब 5 अमेरिकी मिलियन डालर थी। गीत की सबसे प्रसिद्ध व भव्य प्रस्तुति मई 1962 में विख्यात हालीवुड अभिनेत्री मारिलियन मोनरोर्ड ने अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी को समर्पित की थी। इस गीत को 8 मार्च 1969 को अपालो 9 दल के सदस्यों ने भी गया था। हजारों की संख्या में लोगों ने पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के 81वें जन्मदिवस पर 16 अप्रैल 2008 को इसे व्हाइट हाउस में पेश किया था। 27 जून 2007 को लंदन के हाइड पार्क में सैकड़ों लोगों ने नेल्सन मंडेला के 90वें जन्मदिवस पर भी इसे गाया गया था। अब भी ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ गीत प्रतिवर्ष 2 मिलियन डालर की कमाई कर रहा है। गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड के मुताबिक ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ अंग्रेजी भाषा का सबसे परिचित गीत है।... तो आप भी गाइये- ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘।

Wednesday 28 July, 2010

ये पहेली सुलझाइए

जरा आप भी बताइए कि इस चित्र में किन 10 राजनेताओं के चेहरे छुपे हुए हैं।


!! मैं तो कन्फ्युजड हूँ, अब आपकी बारी है !!

Monday 26 July, 2010

गर मैं चिड़िया होता : दीनदयाल शर्मा


पापा! गर मैं चिड़िया होता
बिन पेड़ी छत पर चढ़ जाता।

भारी बस्ते के बोझे से
मेरा पीछा भी छुट जाता।

होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता।

धुआँ-धूल और बस के धक्के
पापा! फिर मैं कभी न खाता।

कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता

दीनदयाल शर्मा

Wednesday 21 July, 2010

बच्चों को स्कूल में पीटा तो...

स्कूलों में शिक्षकों द्वारा बच्चों को पीटने की घटना आम है। हालांकि अब इसमें काफी हद तक कमी आई है। बावजूद इसके अब बच्चों को पीटना आसान नहीं होगा, क्योंकि अब एक ऐसा मॉडयूल तैयार किया गया जो बच्चों को शिक्षकों की पिटाई से बचाएगा। एक प्रकार का यह टूल किट शिक्षकों को उनके सवालों के जवाब देते हुए उन्हे स्कूलों में एक सकारात्मक वातावरण तैयार करने में सहायता देगा। प्लॉन इंडिया ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग के सहयोग से एक पॉजिटिव डिसीपलीन मॉडयूल तैयार किया गया है।

मॉड्यूल का फाइनल ड्राफ्ट एनसीईआरटी व यूनिसेफ से प्राप्त हुए फीड बैक के आधार पर तैयार हुआ है। देश भर में वर्ष 2015 तक सात राज्यों के 2000 स्कूलों तक इसे पहुंचाने का लक्ष्य भी तैयार किया गया है। मॉडयूल तैयार करने के पीछे प्रमुख उद्देश्य स्कूलों में हर प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए वातावरण तैयार करना है। खासकर यह मॉडयूल कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों व मुख्य अध्यापकों को पढ़ाने की तकनीक सिखाने में सहायक बनेगा।

भारत में यह शैक्षणिक सिस्टम से हिंसा को रोकने में काफी कारगर होगा। स्कूलों में बच्चों के साथ हिंसात्मक कार्रवाई न हो इसके संबंध में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। जागरूकता फैलाने के लिए प्लॉन इंडिया 60 वॉलंटियर तैयार करेगा, जिनकी मदद से अन्य राज्यों में स्कूलों में हिंसात्मक गतिविधियों की रोकथाम की जाएगी। इसके माध्यम से स्कूल में सकारात्मक वातावरण तैयार किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि प्लॉन इंडिया की एक स्टडी के आधार पर मॉडयूल तैयार हुआ है। दरअसल स्टडी में पाया गया है कि स्कूलों में बच्चे 33 विभिन्न प्रकार की सजा की शिकायतें करते है, जिसमें उन्हे पीटना, रस्सी से बांधना, शारीरिक प्रताड़ना जैसी घटनाएं शामिल है। हैरत की बात यह है कि इतने सारे बच्चों को यह नहीं लगा कि पीटा जाना ठीक था।
तो टीचर जी, अब संभल जाएँ...यदि बच्चों को स्कूल में पीटा तो...

Tuesday 20 July, 2010

बच्चे हिन्दुस्तान के : डा0 राष्ट्रबंधु


बच्चे हिन्दुस्तान के
चलते सीना तान के
तानसेन की तरह गा रहे
नया तराना शान से।

हम किरणों जैसा चमकाते
कण कण के इतिहास को
हम विलास को छोड़ मोड़ते
वैभवपूर्ण विलास को।
हमने अपने रथ के घोड़े
रक्खे हरदम तान के
भाग्य बनाते अपने सबके
बंजर रेगिस्तान के।
बच्चे हिन्दुस्तान के...।।

शीत चाँदनी जैसे हम हैं
पूरनमासी लक्ष है
नहीं अमावस्या में अटके
मंजिल दूर समक्ष है।
गीता गायन करते रहते
कर्म प्रमुखता मान के।
बच्चे हिन्दुस्तान के ..।।

-डा० राष्ट्रबंधु

Saturday 17 July, 2010

वो बचपन : मुकेश कुमार सिन्हा

जाड़े की शाम
धुल धूसरित मैदान
बगल की खेत से
गेहूं के बालियों की सुगंध
और मेरे शरीर से निकलता दुर्गन्ध !
तीन दिनों से
मैंने नहीं किया था स्नान
ऐसा था बचपन महान !

दादी की लाड़
दादा का प्यार
माँ से जरुरत के लिए तकरार
पढाई के लिए पापा-चाचा की मार
खेलने के दौरान दोस्तों का झापड़
सर "जी" की छड़ी की बौछाड़
क्यूं नहीं भूल पाता वो बचपन!!

घर से स्कूल जाना
बस्ता संभालना
दूसरे हाथों से
निक्कर को ऊपर खींचे रहना
नाक कभी कभी रहती बहती
जैसे कहती, जाओ, मैं नहीं चुप रहती
फिर भी मैया कहती थी
मेरा राजा बेटा सबसे प्यारा ..
प्यारा था वो बचपन सलोना !

स्कूल का क्लास
मैडम के आने से पहले
मैं मस्ती में कर रह था अट्टहास
मैडम ने जैसे ही मुझसे कुछ पूछा
रुक गयी सांस
फिर भी उन दिनों की रुकी साँसें ,
देती हैं आज भी खुबसूरत अहसास !
वो बचपन!!

स्कूल की छुट्टी के समय की घंटी की टन टन
बस्ते के साथ
दौड़ना , उछलना ...
याद है, कैसे कैसे चंचल छिछोड़े
हरकत करता था बाल मन
सबके मन में
एक खास जगह बनाने की आस लिए
दावं, पेंच खेलता था बचपन
हाय वो बचपन!!

वो चंचल शरारतें
चंदामामा की लोरी
दूध की कटोरी
मिश्री की चोरी !
आज भी बहुत सुकून देता है
वो बचपन की यादें
वो यादगार बचपन !!


मुकेश कुमार सिन्हा

Thursday 15 July, 2010

वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लॉगर का ख़िताब अक्षिता (पाखी) को

आइये आज आपको मिलवाते हैं, लोकसंघर्ष-परिकल्पना द्वारा आयोजित ब्लागोत्सव-2010 में वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही चिट्ठाकारा का ख़िताब पाई अक्षिता (पाखी) से. अक्षिता के बारे में लिखी इन पंक्तियों पर गौर करें- एक ऐसी नन्ही ब्लोगर जिसके तेवर किसी परिपक्व ब्लोगर से कम नहीं....जिसकी मासूमियत में छिपा है एक समृद्ध रचना संसार...जो अपने मस्तिष्क की आग को बड़ी होकर पूरी दुनिया के हृदय तक पहुंचाना चाहती है....जानते हैं कौन है वो ?
वह है हमारी, आपकी,सबकी लाडली अक्षिता....
यानी अक्षिता पाखी , जिसे हम ब्लोगोत्सव -२०१० में प्रकाशित रचनाओं की श्रेष्ठता के आधार पर "वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लोगर" के रूप में सम्मानित करने का निर्णय लिया है।

(लोकसंघर्ष परिकल्पना सम्मान : वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लोगर शीर्षक से परिकल्पना ब्लॉग पर रविन्द्र प्रभात द्वारा प्रकाशित)
*************************************************************************************
अब चलिए सितारों की महफ़िल में भी अक्षिता (पाखी) से मिलते हैं-
अक्षिता पाखी हिंदी ब्लॉग जगत की एक ऐसी मासूम चिट्ठाकारा, जिसकी कविताओं और रेखाचित्र से ब्लोगोत्सव की शुरुआत हुयी और सच्चाई यह है कि उसकी रचनाओं की प्रशंसा हिंदी के कई महत्वपूर्ण चिट्ठाकारों से कहीं ज्यादा हुयी । यदि अक्षिता को ब्लोगोत्सव का सुपर स्टार कहा जाए तो शायद न कोई अतिश्योक्ति होगी और न शक की गुंजाईश ही । इसीलिए उसे ब्लोगोत्सव की टीम ने "वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही चिट्ठाकारा" का खिताब देते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया है । "जानिये अपने सितारों को" के अंतर्गत आज प्रस्तुत है उनसे पूछे गए कुछ व्यक्तिगत प्रश्नों के उत्तर-
(१) पूरा नाम :अक्षिता
(२) पिता/माता का नाम :श्री कृष्ण कुमार यादव/ श्रीमती आकांक्षा यादव
(३) वर्तमान पता :द्वारा श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
(३) ई मेल का पता :akshita_06@rediffmail.com
(३) टेलीफोन/मोबाईल न।: 09476046232
(४) प्रमुख व्यक्तिगत ब्लॉग :पाखी की दुनिया (http://pakhi-akshita.blogspot.com/)
(५) अपने ब्लॉग के अतिरिक्त अन्य ब्लॉग पर गतिविधियों का विवरण :
ब्लागोत्सव में ड्राइंग व बाल-कविता
ताऊजी डाट काम पर बाल-कविता
(http://www.taauji.com/2010/05/blog-post_02.html),
सरस प्यास पर मेरी ड्राइंग और उस पर लिखा गया शिशु गीत
(http://saraspaayas.blogspot.com/2010/06/blog-post_11.html)
(६) अपने ब्लॉग के अतिरिक्त आपको कौन कौन सा ब्लॉग पसंद है ?
शब्द-शिखर, शब्द सृजन की ओर, उड़न तश्तरी, परिकल्पना, माँ, सरस पायस, ब्लागोत्सव-2010, उत्सव के रंग, डाकिया डाक लाया, आदित्य, माधव, नन्हा मन, बाल सजग, दीन दयाल शर्मा, बाल संसार, फुलबगिया, नन्हें सुमन, बाल सभा, बाल उद्यान, युवा-मन, सप्तरंगी प्रेम, नन्हे मुन्हे, नव सृजन, गीत सहित ढेर सारे।
(७) ब्लॉग पर कौन सा विषय आपको ज्यादा आकर्षित करता है?
बच्चों से जुडी रचनाएँ, ड्राइंग, चर्चा इत्यादि ।
(८) आपने ब्लॉग कब लिखना शुरू किया ?
जून, २००९
(९) यह खिताब पाकर आपको कैसा महसूस हो रहा है ?
बहुत अच्छा लग रहा है।
(१०) क्या ब्लोगिंग से आपकेमें अथवा अन्य आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न नहीं होता ?
नहीं।
(११) ब्लोगोत्सव जैसे सार्वजनिक उत्सव में शामिल होकर आपको कैसा लगा ?
बहुत अच्छा।
(१२) आपकी नज़रों में ब्लोगोत्सव की क्या विशेषताएं रही ?
बड़ों के साथ-साथ बच्चों की रचनाएँ इत्यादि भी प्रस्तुत करना।
(१३) ब्लोगोत्सव में वह कौन सी कमी थी जो आपको हमेशा खटकती रही ?
कोई नहीं।
(१४) ब्लोगोत्सव में शामिल किन रचनाकारों ने आपको ज्यादा आकर्षित किया ?
सबने, सबकी रचनाएँ अच्छी लगी ....!
(१५) किन रचनाकारों की रचनाएँ आपको पसंद नहीं आई ?
कहा न , सबकी रचनाएँ बहुत अच्छी थी ....!
(१६) क्या इस प्रकार का आयोजन प्रतिवर्ष आयोजित किया जाना चाहिए ?
हाँ , मगर बच्चों की भागीदारी ज्यादा होनी चाहिए
(१७) आप कुछ अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताएं :
मेरा नाम अक्षिता है। मम्मी-पापा मुझे प्यार से 'पाखी' नाम से बुलाते हैं।मेरा जन्म 25 मार्च, 2007 को को कानपुर में हुआ। मेरा पैतृक स्थान आजमगढ़ है, फ़िलहाल अपने मम्मी-पापा के साथ पोर्टब्लेयर में हूँ। यहाँ में कारमेल स्कूल में नर्सरी में पढ़ती हूँ। मेरी रुचियाँहैं- प्लेयिंग, डांसिंग, ड्राइंग, ट्रेवलिंग, ब्लागिंग, अच्छी-अच्छी रचनाएँ पढना व उन्हें समझने की कोशिश करना।
(१८) चिट्ठाकारी से संवंधित क्या कोई ऐसा संस्मरण है जिसे आप इस अवसर पर सार्वजनिक करना चाहती हैं ?
ब्लोगिंग में कई ऐसे लोग हैं, जिनसे न तो मैं कभी मिली या फोन पर बात की। पर उनका स्नेह देखकर लगता है कि मानो हम उन्हें लम्बे समय से जानते हों। इसी क्रम में बाल साहित्यकार व ब्लोगर दीनदयाल शर्मा अंकल जी ने अपनी बाल-गीतों की पुस्तक 'चूं-चूं' के कवर पेज पर मेरा फोटो लगाया, यह मेरे लिए यादगार पल रहेगा। ऐसे ही एक दिन मेरी ममा के ब्लॉग 'शब्द-शिखर' पर समीर लाल अंकल जी ने टिपण्णी की कि आज पाखी मुँह क्यों फुलाए हुए है, मैंने लिखा कि आज तक आपने मेरे लिए कोई कविता नहीं लिखी और शाम तक समीर अंकल जी ने प्यारी सी कविता लिखकर मेल कर दी। ऐसे ही रावेन्द्र कुमार 'रवि' अंकल जी ने मेरी ड्राइंग पर एक शिशु-गीत ही रच दिया. दो बातें ब्लागोत्सव-२०१० से जुडी हुई कभी नहीं भूलूंगी -पहली, जब पहली बार मैंने इस ब्लॉग उत्सव के बारे में सुना था तो बड़ी उदास हुई थी कि हम बच्चों के लिए वहाँ कुछ नहीं है। फिर मैंने आपको लिखा कि- हम बच्चे इसमें अपनी ड्राइंग या कुछ भेज सकते हैं कि नहीं। जवाब में आप ने लिखा कि अक्षिता जी! क्षमा कीजिएगा बच्चों के लिए तो मैंने सोचा ही नहीं जबकि बिना बच्चों के कोई भी अनुष्ठान पूरा ही नही होता, इसलिए आप और आपसे जुड़े हुए समस्त बच्चों को इसमें शामिल होने हेतु मेरा विनम्र निवेदन है...यह पढ़कर अच्छा लगा कि एक नन्हीं सी बच्ची की बातों को आपने कितने गंभीरता से लिया और बच्चों की इंट्री भी इस उत्सव में सुनिश्चित हो गई. ब्लागोत्सव में पहले दिन ही ''कला दीर्घा में आज : अक्षिता(पाखी) की अभिव्यक्ति'' और उस पर प्राप्त ढेर सारे कमेन्ट देखकर मन प्रफुल्लित हो गया. इन सब संस्मरणों को मैं नहीं भूल सकती।
(19) अपनी कोई पसंदीदा रचना की कुछ पंक्तियाँ सुनाएँ :
गौरैया रोज तिनका लाती
प्यारा सा घोंसला बनाती।
चूं-चूं करते उसके बच्चे
चोंच से खाना खिलाती।

बहुत बहुत धन्यवाद पाखी .....इस अवसर पर ऋग्वेद की दो पंक्तियां आपको समर्पित है कि - ‘‘आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणी:। हृदाश्च पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें ।।’’अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले।
========================
प्रस्तुति : रवीन्द्र प्रभात

(..तो कैसी लगी 'बाल-दुनिया' में वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही चिट्ठाकारा अक्षिता (पाखी) से मुलाकात. अपने कमेन्ट जरुर लिखियेगा. यदि आप भी चाहते हैं कि आपकी प्रतिभा के बारे में लोग रु-ब-रु हों, तो हमें जरुर लिखें.)


Wednesday 14 July, 2010

गणतंत्र दिवस पर बहादुरी पुरस्कार के लिए बच्चों से आवेदन आमंत्रित

भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा हर वर्ष बच्चों को उनकी बहादुरी के अनुकरणीय कार्यों के लिए पुरस्कार प्रदान किया जाता है। ये पुरस्कार भारत के प्रधानमंत्री द्वारा गणतंत्र दिवस से ठीक पहले भेंट किया जाता है। पुरस्कार प्राप्त बच्चे राजधानी दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस परेड में भी हिस्सा लेते हैं।

उम्मीदवारों के चयन के लिए मुख्य मानदंडों में जीवन के खतरों से मुकाबला करते हुए घायल होना, सामाजिक बुराई अथवा अपराध के खिलाफ बहादुरी तथा साहसिकता, बाल्यकाल में जोखिमपूर्ण कार्य आदि को ध्यान में रखा जाएगा। आवेदन की सिफारिश से पहले प्रत्येक मामले की मौके पर जाँच अनिवार्य होगी। प्रत्येक आवेदन के साथ मामले की जांच रिपोर्ट भी होनी चाहिए। सभी संबंधों में पूर्ण सिफारिश के साथ आवेदन 30 सितम्बर, 2010 तक भारतीय बाल कल्याण परिषद, 4 दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली- 110002 पर पहुंचना अनिवार्य है।

Tuesday 13 July, 2010

बारिश का मजा : कृष्ण कुमार यादव


चिड़िया चहके, बगिया महके
चारों तरफ हुई हरियाली
बारिश के रिमझिम मौसम में
खुलकर झूमे डाली-डाली ।

आया सावन, आए बादल
मस्त पवन की देखो हलचल
गाना गाओ, झूला झूलो
पेंग बढ़ाकर नभ को छू लो।

बंटी, बबलू, पाखी आओ
सब बारिश का मजा उठाओ
छप-छप-छप खेलो पानी में
कागज की तुम नाव चलाओ।

Monday 12 July, 2010

'बाल-दुनिया' हेतु रचनाएँ आमंत्रित

बचपन भला किसे नहीं भाता. हम कितने भी बड़े हो जाएँ, पर बचपन की यादें कभी नहीं भूलतीं. हमारे अंतर्मन में एक बच्चा सदैव जीवंत रहता है, जरुरत बस उसे खोजने की है. कई बार जब हम उदासी के दरमियाँ होते हैं, तो अचानक बचपन से जुडी कोई याद हमें गुदगुदा जाती है. आजकल के बच्चे भी तो काफी फास्ट हो गए हैं. ब्लॉग जगत में उनके बनाये चित्र दिखने लगे हैं तो उनकी प्यारी-प्यारी अभिव्यक्तियाँ भी रंग बिखेरनी लगी हैं. 'बाल-दुनिया' में बच्चों की बातें होंगी, बच्चों के बनाये चित्र और रचनाएँ होंगीं, उनके ब्लॉगों की बातें होगीं, बाल-मन को सहेजती बड़ों की रचनाएँ होंगीं और भी बहुत कुछ....पर यह सब हम अकेले नहीं कर सकते, इसलिए हमें आप सभी के सहयोग की भी जरुरत पड़ेगी।
'बाल-दुनिया' हेतु बच्चों से जुडी रचनाएँ, चित्र और बच्चों के बारे में जानकारियां आमंत्रित हैं. आशा है आप सभी का सहयोग हमें मिलेगा !!