Sunday 29 August, 2010

स्कूल में बच्चों को शारीरिक दंड क्यों : अरिंदम चौधरी

मेरी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के एक बेहतरीन स्कूल में हुई। वहां शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को थप्पड़ मारना आम बात थी। यहां तक कि चौथी-पांचवीं कक्षा के बच्चों की भी बेंत से पिटाई लगाई जाती थी। सौभाग्य से मैं इससे बचा रहा। हालांकि छठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मैं उतना भाग्यशाली नहीं रहा। एक दिन स्कल्पचर की क्लास के दौरान जब मैं अपने एक मित्र के साथ सृजनात्मक मसले पर चर्चा कर रहा था कि तभी एक असिस्टेंट ने आकर मेरे सिर पर एक जोरदार चपत लगा दी। मैं गुस्से का घूंट पीकर रह गया। घर लौटने पर मैंने अपने पिता से कहा कि उन्हें इस मसले पर कुछ करना होगा। अगले दिन पिताजी मुझे स्कूल के प्रिंसिपल के पास लेकर गए और कहा कि वह नहीं चाहते कि उनके बेटे यानी मुझे स्कूल में शारीरिक दंड मिले। चर्चा करने के बाद यह तय हुआ कि अबसे मेरी जेब में हमेशा एक पत्र रहेगा, जिसमें लिखा था कि यदि किसी टीचर को मुझसे कोई समस्या है तो वह इसकी लिखित शिकायत मेरे पिताजी से कर सकता है लेकिन मुझे स्कूल में कोई मारेगा नहीं। इस पत्र पर प्रिंसिपल ऑफिस की मुहर लगी थी। उसके बाद से इस स्कूल में किसी भी टीचर ने मुझे नहीं मारा।

सच यह है कि किसी को (और खासकर स्कूल में बच्चों को) पीटकर हम अपने शिक्षा की कमी को ही जाहिर करते हैं। यदि हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जहां शांति हो, जहां सड़कों पर दंगे न हों और जहां लोग सहिष्णु हों और एक-दूसरे से प्यार करें, तो हमें अपने बच्चों को स्कूल के शुरुआती जीवन से ही शांति, प्यार और सहिष्णुता के दर्शन कराने चाहिए।

एक टीचर के तौर पर अपने सोलह साल के अनुभव के बाद मैं पूरे भरोसे के साथ यह कह सकता हूं कि ऐसा कोई कारण नहीं होता जिसके लिए किसी टीचर के लिए छात्र को क्लासरूम में या दूसरों के सामने मारना जरूरी हो जाए। यदि कोई शिक्षक अच्छा है और शिक्षण के प्रति समर्पित है, तो उसे पढ़ाने की प्रक्रिया में इतना आनंद आता है कि छात्रों के लिए भी यह मनोरंजक प्रक्रिया बन जाती है।

आईआईपीएम में जब कोई टीचर आकर यह शिकायत करता है कि छात्रों का फलां समूह अनियंत्रित और खराब है तो मैं उस टीचर को बदल देता हूं, क्योंकि मुझे पक्का यकीन है कि कोई भी छात्र खराब नहीं होता। यह टीचर ही हैं जो खराब या उबाऊ होते हैं जिनकी दूसरों की जिंदगी बदलने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती।

अच्छे शिक्षक को कभी छात्रों के साथ समस्या नहीं होती। खराब शिक्षकों को ही होती है और वे इसके समाधान के लिए शारीरिक दंड का शॉर्टकट तरीका अपनाते हैं। शारीरिक दंड बचपन में कभी कारगर नहीं होता। इससे मुख्यत: दो तरह के इंसान बनते हैं।
एक तो वे जो इसके आदी होते हैं और इसकी परवाह नहीं करते हुए ज्यादा अड़ियल हो जाते हैं। दूसरे वे जिनका व्यक्तित्व सजा के भय से बिगड़ जाता है। ऐसे छात्र भले ही ज्यादा आज्ञाकारी हो जाएं लेकिन उनका व्यक्तित्व हमेशा के लिए खराब हो जाता है।

हमें ऐसे कानून की जरूरत है जो स्कूलों में शारीरिक दंड की प्रक्रिया को पूरी तरह रोक दे। स्कूल का काम बच्चों की जिंदगी संवारना है, बर्बाद करना नहीं। हां, स्कूल में कुछ ऐसे बच्चे भी आते हैं, जिन्हें घर में मारा-पीटा जाता है और उनका बर्ताव कई बार बहुत नकारात्मक होता है।

टीचर में यह क्षमता होनी चाहिए वह उनके बर्ताव को बदल सके। हां, यदि टीचर छात्रों को बदलने के लिहाज से समुचित रूप से प्रशिक्षित न हो और बच्च बहुत उद्दंड और बिगड़ैल हो तो टीचर ज्यादा से ज्यादा यही करे कि उस बच्चे को उसके माता-पिता या कानून अनुपालकों को सौंप दे। लेकिन टीचर खुद पुलिस नहीं है और उसे बच्चों को शारीरिक रूप से दंडित करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। अभिभावक भी बच्चों की स्कूल में पिटाई को रोकें।

अच्छा टीचर वही है जो मानता हो कि उसका काम शिक्षा के जरिए बच्चों को बेहतर इंसान बनाना है। वह मानता हो कि उसका काम बच्चों को यह भरोसा दिलाना है कि वे क्लास के अंदर जो भी सीखेंगे, उससे उनका जीवन बदलेगा और वे बेहतर इंसान बनेंगे।

- लेखक शिक्षाविद व आईआईपीएम के प्रमुख हैं।

Tuesday 24 August, 2010

राखी का त्यौहार आया : आकांक्षा यादव


प्यारी-प्यारी मेरी बहना
हरदम माने मेरा कहना
राखी का त्यौहार आए
मन को भाये, खूब हर्षाए।

बांधे प्यार से राखी बहना
प्यार का अद्भुत सुंदर गहना
भैया मेरे तुम रक्षा करना
दुःख आये तो मिलजुल सहना।

राखी बांध मिठाई खिलाए
तिलक लगाकर खूब दुलराए
ऐसा सुंदर है यह रिश्ता
देख-देख मम्मी मुस्कायंे।

पढ़-लिखकर मैं बड़ा बनूंगा
बहना को दूंगा उपहार
मेरी बहना जग से न्यारी
पावन है भाई-बहन का प्यार।

Friday 20 August, 2010

बन्दर आया : संजय भास्कर


बन्दर आया बन्दर आया
मेरे घर एक बन्दर आया
मैं डर कर भागा अन्दर
मेरे पीछे पड़ गया बन्दर
मैंने तब उसे केला दिखलाया
सोचा, मुश्किल से पीछा छुडाया
बन्दर निकला बड़ा चालाक
करता रहा भागम-भाग
बन्दर ने मुझसे केला छीना
मुझको आया जोर का पसीना
बन्दर आया बन्दर आया
मेरे घर एक बन्दर आया.

संजय भास्कर

Sunday 15 August, 2010

तिरंगे की शान : कृष्ण कुमार यादव


तीन रंगों का प्यारा झण्डा
राष्ट्रीय ध्वज है कहलाता
केसरिया, सफेद और हरा
आन-बान से यह लहराता

चौबीस तीलियों से बना चक्र
प्रगति की राह है दिखाता
समृद्धि और विकास के सपने
ले ऊँचे नभ में सदा फहराता

अमर शहीदों की वीरता और
बलिदान की याद दिलाता
कैसे स्वयं को किया समर्पित
इसकी झलक दिखलाता

आओ हम यह खायें कसम
शान न होगी इसकी कम
वीरों के बलिदानों को
व्यर्थ न जानें देंगे हम।

कृष्ण कुमार यादव

Tuesday 10 August, 2010

सब हैप्पी बर्थ-डे गाओ : आकांक्षा यादव


देखो जन्म-दिन है आया
बच्चों करो खूब धमाल
जमके खूब खाओ सब
हो जाओ लाल-लाल।

सब हैप्पी बर्थ-डे गाओ
मस्ती करो, मौज मनाओ
बंटी, बबली, पाखी, बेबी
सब मिलकर बैलून फुलाओ।

आईसक्रीम और केक खाओ
कोई भी न मुँह फुलाओ
कितना प्यारा बर्थ-डे केक
सब हैप्पी बर्थ-डे गाओ।

(आज कृष्ण कुमार जी का हैपी बर्थ-डे है, यहाँ प्रदर्शित चित्र उनके बचपन की है. यह बाल-गीत उन्हें समर्पित)

Friday 6 August, 2010

दिल्ली में छठी कक्षा के बच्चे ने लिखी कुत्ते पर किताब

सुनने में आश्चर्य लगता है, पर दिल्ली के माउंट सेंट मेरी स्कूल के कक्षा छह के छात्र 11 वर्षीय ध्रुव ने अपने तीन साल के पालतू कुत्ते की दिनचर्या को लेकर उसकी आत्मकथा ही लिख डाली। ‘ऐज क्यूट ऐज पग’ नाम की इस किताब का लोकार्पण जाने माने पर्यावरणविद् और फिल्म निर्माता माइक पांडे ने किया। ध्रुव ने अपनी इस पुस्तक में एक कुत्ते की दृष्टि से दुनिया को देखने और समझने की कोशिश की . दिल्ली के माउंट सेंट मेरी स्कूल के कक्षा छह के छात्र ध्रुव का कहना है कि सबसे पहले गर्मी की छुट्टियों के दौरान स्कूल में मिले कहानी लेखन को लेकर उसके मन में कुत्ते की ओर से कुछ लिखने की बात दिमाग मेंआई कि आखिर एक कुत्ता हमारे बीच रहते हुए क्या सोचता होगा। ? कुत्ते की यह आत्मकथा हल्की-फुल्की कहानी के शक्ल में है, जिसमें भरपूर कॉमेडी है। मुख्य पात्र टप्पी है जिसका सपना है कि वह इंसानों जैसा दिखे। इसी सपने को साकार करने के लिए वह कई बार इंसानों जैसी हरकतें करता है। इन सभी मजेदार हिस्सों को ध्रुव ने अपनी नन्हीं कल्पनाओं के आधार पर बड़े ही मजेदार तरीके से व्यक्त किया है।.वाकई यह दर्शाता है कि बच्चे कितने रचनात्मक होते हैं. अपने परिवेश में हो रही घटनाओं से वे ना-वाकिफ नहीं हैं और यहीं से उनकी रचनात्मकता को पंख भी लग जाते हैं...!!

Thursday 5 August, 2010

ये क्यूं हो गया : किरण राजपुरोहित नितिला


जी भरकर खेली भी न थी
पापा की गोदी में
लडाया ही न था मां ने
भरपूर अपनी बांहों में!
दादी की दुलार ने
थपका भी न था अभी
दादा ने उंगली थाम
कुछ दूर ही चलाया था!
जीजी की छुटकी अभी
मस्ती में उछली न थी
छोटू का दूध झपट कर
पिया न था जी भर कर!
छुटकी के खिलौनों से
कुढ़ ही तो रही थी
भैया के चिकोटी के निशां
अभी ताजे ही तो थे,
बाजू से उसके मेरे दांतों
की ललाई छूटी न थी
ठुनक ठुनक कर जिद से
रोना मनमानी में और
खुश हो कर दादा के
गले लगती ही थी !
सहेली की धौल याद थी
उसकी कुट्टी अभी भूली न थी
नई फ्रॉक न आने पर
मचलना जारी ही था
उछल कर भइसा की गोद में
चढना यूं ही चल रहा था !
पड़ोस के भैया को
बहाने खोजती थी चिढाने के
पड़ोसन चाची को डराना
चुपके से, चल ही रहा था
संतोलिया छुपाछुपी का रंग
अभी चढ़ ही रहा था
गड्डे कंचे अभी स्कर्ट की
जेब में चिहुंक ही रहे थे !
आंगन में चहक
शुरु ही हुई थी
मां की लाड़ली गोरैया
कहां मस्त फुदकी थी ,
महसूस ही तो न किया था
मन भर ना ही जिया था
जो अनमोल था उसे
सहज ही तो लिया था
इतना तो सोचा भी न था
और ....और..........
और ....सबकी नजरें बदल गई
नसीहतें बरसने लगी !
कुछ सीखो !
कब सीखोगी !
यहां मत जाओ !
उससे बात न करो !
इस तरह मत हंसा करो!
सब कहते संभल कर रहो !
यह मत पहनो ! नजर नीची रखो !
क्यूं कि ------क्यूं कि
अब तुम बड़ी हो गई हो !!

किरण राजपुरोहित नितिला

Tuesday 3 August, 2010

मोबाइल : दीनदयाल शर्मा


माँ, मैं भी मोबाइल लूँगा,
अच्छी-अच्छी बात करूँगा।

हर मौके पर काम यह आता,
संकट में साथी बन जाता।
होम-वर्क पर ध्यान मैं दूँगा,
पढऩे में पीछे न रहूँगा।

मेरी ख़बर चाहे कभी भी लेना,
एस० एम० एस० झट से कर देना।
स्कूल समय में रखूँगा बंद,
सदा रहूँगा मैं पाबंद।

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।

Sunday 1 August, 2010

आज फ्रैंडशिप डे ...बधाई

आज 1अगस्त को ‘फ्रेण्डशिप-डे‘ है। चलिए, आज इसके बारे में बताती हूँ। पूरी दुनिया में अगस्त माह का प्रथम रविवार फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है. इसके इतिहास में जाएँ तो अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1935 में अगस्त माह के प्रथम रविवार को दोस्तों के सम्मान में ‘राष्ट्रीय मित्रता दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था। इस अहम दिन की शुरूआत का उद्देश्य प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उपजी कटुता को खत्म कर सबके साथ मैत्रीपूर्ण भाव कायम करना था। पर कालान्तर में यह सर्वव्यापक होता चला गया। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े, इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बकायदा 1997 में लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती के राजदूत के रूप में पेश किया।

इस दिन तो फ्रेण्डशिप कार्ड, क्यूट गिफ्ट्स और फ्रेण्डशिप बैण्ड देकर आप दोस्तों को बधाई दे सकते हैं या नई दोस्ती की शुरुआत कर सकते हैं. पर एक बात सदैव याद रखना कि सच्चा दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त का सही मायनों में विश्वासपात्र होता है। अगर आप सच्चे दोस्त बनना चाहते हैं तो अपने दोस्त की तमाम छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी बातों को उसके साथ तो शेयर करो लेकिन लोगों के सामने उसकी कमजोरी या कमी का बखान कभी न करो। नही तो आपके दोस्त का विश्वास उठ जाएगा क्योंकि दोस्ती की सबसे पहली शर्त होती है विश्वास। हाँ, एक बात और। उन पुराने दोस्तों को विश करना न भूलें जो हमारे दिलों के तो करीब हैं, पर रहते दूरियों पर हैं।